हमारा स्टाइल और एटीट्यूड ही कुछ अलग है,
बराबरी करने जाओगे तो बिक जाओगे.

हमें शायर समज के यूँ नज़र अंदाज मत करिए,
नज़र हम फेर ले तो हुस्न का बाज़ार गिर जाएगा.

शाखों से गिर कर टूट जाऊ मै वो पत्ता नहीं,
आँधियों से कह दो की अपनी औकात में रहे.

मेरी मज़ाक को समज ने के लिए बस इतना ही काफी है,
मै उसका हरगिज़ नहीं होता जो हर एक का हो जाए.

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं,
हमसे जमाना है, ज़माने से हम नहीं.

इतना एटीट्यूड न दिखा ज़िन्दगी, तक़दीर बदलती रहेती है,
शीशा वंही रहेता है पर तस्वीर बदलती रहेती है.

शरीफ है हम किसी से लड़ते नहीं, पर जमाना जानता है, किसी से बाप से हम डरते नहीं!

नाम और पहेचान चाहे छोटी हो,
पर अपने दम पर होनी चाहिए.

मै हमदर्दी की खैरातो के सिक्के मोड़ देता हु,
जिस पर बोज़ बन जाऊ, उसे मै खुद ही छोड़ देता हु.

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