नाकाम है मेरी सब कोशिश तुम्हे मानाने की,
कहा से सीखी है ये अदा रूठ जाने की.
बहुत बाते सोच रखी है तुम्हे सुनाने के लिए,
पर एक तुम हो की आती ही नहीं मनाने के लिए.
कुछ इस तरह वो हमें मनाते है,
अगर मै जरा सा रूठ जाऊं,
वो मुझे अपने सीने से लगाते है.
मान जाना मेरी जान और कितना हमें रुलाएगी,
रह नहीं सकते बात किए बिना
और कितना हमें तडपाएगी.
रूठने का हक है तुजे,
वजह बताया कर,
खफा होना गलत नहीं,
तू खता बताया कर.
उनकी नादानी भी हद है जनाब, बात-बात पे रुठते भी बहोत है हमसे,
और हमारे बिना रहा भी नहीं जाता उनसे.
सांसें थम सी गई है तुम्हारे जाने से,
अब लौट भी आओ किसी बहाने से.
रूठने-मानाने का सिलसिला कुछ यूँ हुआ,
मान गया था मगर,
फिर रूठने का दिल हुआ.
हिम्मत तो इतनी थी की सागर भी पार कर सकते थे,
मजबूर इतना हुए की दो बूंद आंसूं ओ ने डूबा दिया.
बात न करने की हमें कोई वजह नहीं दे रहे हो,
पता नहीं हमें रूठने की सजा क्यों दे रहे हो.
रूठना हमें भी अच्छा लगता है, अगर कोई मानाने वाला साथ हो तो.
रूठना अगर तुम्हारी आदत है तो तुम्हे मानना मेरा कर्तव्य है,
तुम हजार बार रुठोगी तो मै लाखो बार मनाऊंगा.
सच्चे प्यार की छोटी सी कहानी जरुर पढ़े!
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