किसी कष्ट अथवा आपतिकाल से बचाव के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए. धन खर्च करके भी स्त्रियों की रक्षा करनी चाहिए, परन्तु स्त्रियाँ और धन से भी आवश्यक है की व्यक्ति स्वयं की रक्षा करे.
पुरुषो की अपेक्षा स्त्रियाँ का आहार दोगुना होता है, बुध्धि चौगुना, साहस छः गुना और कामवासना आठ गुना होती है.
जूठ बोलना, बिना सोचे-समजे किसी कार्य को प्रारंभ कर देना, दुस्साहस करना, छलकपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्र रहना और निर्दयता – ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष है.
जो पीठ पीछे कार्य को बिगाड़े और सामने होने पर मीठी-मीठी बातें बनाए, ऐसे मित्र को उस घड़े के सामान त्याग देना चाहिए जिसके मुंह पर तो दूध भरा हुआ है परंतु अंदर विष हो.
मन से सोचे हुए कार्य को वाणी द्वारा प्रगट नहीं करना चाहिए, परंतु मनपूर्वक भली प्रकार सोचते हुए उसकी रक्षा करनी चाहिए और चुप रहते हुए उस सोची हुए बात को कार्यरूप में बदलना चाहिए.
जो वृक्ष बिलकुल नदी के किनारे पैदा होते है, जो स्त्री दूसरो के घर में रहेती है और जिस राजा के मंत्री अच्छे नहीं होते वे जल्दी ही नष्ट हो जाते है, इसमे कोई संशय नहीं है.
वेश्या निर्धन पुरुष को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलहीन वृक्षों को और अचानक आया हुआ अतिथि भोजन करने के बाद घर को त्यागकर चले जाते है.
बुरे चरित्र वाले, अकारण दुसरे को हानि पंहुचाने वाले तथा गंदे स्थान पर रहेने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है.
दुष्ट व्यक्ति और सांप, इन दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो दुष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सांप को चुनना ठीक होगा, क्योकि सांप समय आने पर ही कटेगा, जबकि दुष्ट व्यक्ति हर समय हानि पंहुचाता रहेगा.
अत्यंत रूपवती होने के कारण ही सीता का अपहरण हुआ, अधिक अभिमान होने के कारण रावण मारा गया, अत्याधिक दान के कारण राजा बलि को कष्ट उठाना पडा, इसीलिए किसी भी कार्य में अति नहीं करनी चाहिए.
सच्चे प्यार की छोटी सी कहानी जरुर पढ़े!
NEXT
Find Out More