मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है,
मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा,
तुम मुझे ज़हर लगते हो और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊँगा
Creadit: tehzeebhaafi कौन तुम्हारे पास से उठ कर घर जाता है तुम जिसको छू लेती हो वो मर जाता है
Creadit: tehzeebhaafi रुक गया है वो या चल रहा है हमको सब कुछ पता चल रहा है उसने शादी भी की है किसी से और गाँव में क्या चल रहा है
Creadit: tehzeebhaafi अब मज़ीद उससे ये रिश्ता नहीं रक्खा जाता जिससे इक शख़्स का पर्दा नहीं रक्खा जाता एक तो बस में नहीं तुझसे मोहब्बत ना करूँ और फिर हाथ भी हल्का नहीं रक्खा जाता
Creadit: tehzeebhaafi पढ़ने जाता हूँ तो तस्मे नहीं बाँधे जाते घर पलटता हूँ तो बस्ता नहीं रक्खा जाता
Creadit: tehzeebhaafi क्या ख़बर कौन था वो और मेरा क्या लगता था जिससे मिलकर मुझे हर शख़्स बुरा लगता था
Creadit: tehzeebhaafi तुमने कैसे उसके जिस्म की खुशबू से इन्कार किया उस पर पानी फेंक के देखो कच्ची मिट्टी जैसा है
Creadit: tehzeebhaafi और फिर एक दिन बैठे बैठे मुझे अपनी दुनिया बुरी लग गयी जिसको आबाद करते हुए मेरे मां-बाप की ज़िंदगी लग गयी
Creadit: tehzeebhaafi तिलिस्म-ए-यार ये पहलू निकाल लेता है कि पत्थरों से भी खुशबू निकाल लेता है है बे-लिहाज़ कुछ ऐसा की आँख लगते ही वो सर के नीचे से बाजू निकाल लेता है
Creadit: tehzeebhaafi महीनों बाद दफ्तर आ रहे हैं हम एक सदमे से बहार आ रहे हैं समंदर कर चूका तस्लीम हमको ख़ज़ाने खुद ही ऊपर आ रहे हैं
Creadit: tehzeebhaafi सच में कोई किसी का नहीं होता, ये शायरी पढ़ने के बाद पता चल जाएगा. जरुर पढ़े!
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